गणतंत्र परेड की झांकियां भी कलुषित राजनीति की शिकार
- सुसंस्कृति परिहार

आम जनता में पंद्रह अगस्त का लालकिले की प्राचीर से भाषण और गणतंत्र समारोह में परेड एवं झांकियां विशेष आकर्षण का केंद्र होती हैं। लेकिन पिछले तीन साल से आपको मालूम होना चाहिए केरल की झांकी को शामिल नहीं किया जा रहा है जबकि वह राज्य हर बार अपनी झांकी उत्साह पूर्वक तैयार करता है। इस बार ममता के बंगाल की और तमिलनाडु की झांकी भी परेड में देखने से हम वंचित रह जायेंगे। यह तो सभी जानते हैं कि केरल राज्य में वामदल का शासन है, बंगाल में भाजपा को धूल चटाकर तृणमूल सत्तारूढ़ है और तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कणगम यानि डी एम के की सरकार है।
आईए पहले केरल की बात करें ,केरल सरकार ने इस वर्ष की झांकी में केरल के महान समाज सुधारक श्री नारायण गुरु की प्रतिमा का प्रस्ताव भेजा था लेकिन रक्षा मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को रद्द करते हुए नारायण गुरु की जगह शंकराचार्य की प्रतिमा लगाने को कहा जिसे केरल सरकार यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नारायण गुरु के मुकाबले शंकराचार्य का केरल के समाज मे कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं है।
यहां इस तथ्य का उल्लेख करना जरूरी है कि नारायण गुरु केरल की एक पिछड़ी जाति से आने वाले संत और समाज सुधारक थे। ये कैसा मायाजाल फैलाया जा रहा है जिसमें दलितों के पांव धोने और उनके साथ बैठकर भोजन करेंगे लेकिन केरल की एक पिछड़ी जाति से आने वाले संत और समाज सुधारक नारायण गुरु की प्रतिमा वाली झांकी को गणतंत्र दिवस समारोह की परेड में शामिल नहीं करेंगे।
यही नहीं चेरथला, त्रावणकोर (केरल) की एड़वा समुदाय की दलित महिला नंगेलि के उस संघर्ष की कहानी को CBSE के पाठ्यक्रम से हटा देंगे जो ‘स्तन टैक्स’ देने से मना कर देने वाली केरल की ही दलित महिला नंगेलि के संघर्ष की कहानी को हटाकर अटल बिहारी वाजपेई की कविता को CBSE के पाठ्यक्रम में शामिल करने बाद यह दूसरी घटना है। जिसके जरिये केरल की स्थानीय संस्कृति को नीचा दिखाने की कोशिश की गई है।
उधर बंगाल की झांकी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के 125 वें जन्मदिन पर केंद्रित थी। जिसे बंगाल ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के इतिहास से नेताजी और बंगाल के कई जाने माने क्रांतिकारी लोग जिनमें ईश्वर चंद्रविद्यासागर, रविंद्रनाथटैगोर,विवेकानंद चितरंजन दास, मातंगिनी हाजरा, बिरसा मुंडा और नज़रुल इस्लाम के नाम शामिल थे, की याद को सामने लाने की तैयारी धूमधाम से की थी किंतु इसे भी शामिल न करना शर्मनाक है। इससे केंद्र सरकार की मंशा स्पष्ट हो जाती है कि कांग्रेस और उनके सहयोगियों के प्रति कितनी गन्दी सोच वाले लोग आज आजादी का अमृत महोत्सव इस रुप में मना रहे हैं । यदि इन्हें ऐसे मौके और मिले तो आज इन्होंने अमर जवान ज्योति की पहचान मिटाई है। कल ये हिंदुस्तान की आजादी का इतिहास ही मिटा देंगे। क्योंकि सरकार द्वारा मनोनीत पचहत्तर चयनित लेखक इस बदले इतिहास लेखन में लगे हैं। जिसे आने वाले 15अगस्त 22 में पुस्तक रुप में हम देख पायेंगे ऐसा वे कह रहे हैं।
इसी तरह तमिलनाडु की झांकी को बाहर कर दिया गया है। “तमिलनाडु की झांकी में भी स्वतंत्रता सेनानी वीओसी, महाकवि भारथियार, रानी वेलु नचियार और मारुथु ब्रदर्स शामिल थे। इस झांकी को अनुमति न देना काफी निराशाजनक है। मुख्यमंत्री स्टालिन और बंगाल मुख्यमंत्री ममता ने इस पर पुनर्विचार की मांग भी की थी लेकिन आज़ादी के संग्राम से दूर रहने वाले संघ और उसके अनुषंगी संगठन भाजपा कैसे स्वतंत्रता सेनानियों को बर्दाश्त कर सकते हैं। जबकि कहा ये जा रहा है कि उपेक्षित सेनानियों को वे सामने ला रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अनुपस्थिति को दर्ज करने की ये भी कुत्सित चाल हो।
बहरहाल ये प्रसंग यह स्पष्ट कर रहे हैं कि यह सरकार ना तो दलित महापुरुषों के प्रति श्रद्धा रखती है न दलितों को मूल धारा में लाना चाहती है। दलित भोज दिखावा और वोट का मसाला है। इसी तरह नेताजी के आज़ादी के अवदान के साथ बंगाल के महापुरुषों को भी महत्त्व नहीं देना चाहती। तमिलनाडु के सेनानियों के साथ भी ऐसा व्यवहार हुआ। सरकार समझती है इससे बंगाल में ममता और तमिलनाडु में स्टालिन का कद बढ़ेगा। इसी तरह समाज सुधारक नारायण गुरु की झांकी से केरल को फायदा होगा। तीनों राज्यों में इस समय भाजपा की सरकार नहीं है। जिसका बदला इन महान विभूतियों से लिया जा रहा है।
बताते हैं केन्द्रीय सरकार का झांकियों का अपना पैमाना है वह पहले राज्य की अपनी विशिष्टता को लिए होता था और इसी ख़ूबी को लोग पसंद करते थे। यहां तक की झांकी की एक झलक ही देखकर लोग प्रदेश का नाम बताने लगते थे। अब सिर्फ वन मेन शो है और वह क्या दिखाना चाहता है। उसके अनुरूप भाजपा शासित राज्य सरकारें काम कर रही हैं। इसलिए झांकियों के दिग्दर्शन का मज़ा भी किरकिरा हो गया है। तमाम देश के लोगों से महत्वपूर्ण जब पार्टी और संघ हो जाए तो गणतंत्र का भला आनंद कैसे मिल सकता है?
रक्षामंत्री कितनी ही इस मामले में सफाई दें उनके मंत्रालय का यह व्यवहार उन प्रान्तों की जनता और उनके नायकों का सरासर अपमान है। इसका भरसक विरोध ज़रूरी है। ममता के बंगाल की हुंकार से झांकी तो शामिल नहीं हुईं लेकिन इंडिया गेट की एक छतरी में नेताजी की प्रतिमा लगाने की घोषणा करनी पड़ी है। यह स्थिति संतोषजनक तो नहीं पर जनविरोध ज़रूरी है। क्योंकि उन्होने इस वर्ष बीटिंग रिट्रीट के समय बजने वाली बापू के प्रमुख पसंदीदा गीत” अलाइड विद मी की धुन “को भी निकाल दिया है। यह सरासर राष्ट्र पिता का अपमान है। इसे लेकर तमाम देश में गांधी वादी संगठनों के अलावा कई देशभक्त संस्थाएं, बुद्धिजीवी मिलकर उनकी शहादत दिवस 30 जनवरी से लंबे समय तक प्रतिरोध की भूमिका बना चुके हैं।

राष्ट्र के प्रति इस तरह के तमाम कलुषित विचारों का प्रतिकार आज की बुनियादी ज़रूरत है। इस गंदी राजनीति के खिलाफ सबको उठकर पहल करनी होगी वरना हमारा संघीय ढांचा चरमराकर गिर जायेगा।

